खुद को ही कहीं खोना चाहता था-Hindi Kavita on Khud Ko Khona Chahta Tha:-दोस्तों यह हिंदी रचना प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा की गहराइयों को छू जाने वाली रचना है जो खुद को खोकर भी दूसरों की खुशी के लिए खुद को हर किसी के प्रति समर्पित रखना चाहते है। इसमें एक दिल की भावनात्मकता के संघर्ष को स्पष्ट रूप से बताया गया है जहां हम स्वयं की पहचान खोकर भी सभी के लिए कुछ करना चाहते है।
यह कविता उन लोगों के लिए है जो अपनी पहचान खोकर भी दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने की हमेशा ही कोसिस करते रहते है किसी की परवा किये बेगार ही दिन-रात लगे रहते है और जिस अछे काम के प्रति उनका कोई निजी स्वार्थ भी नही होता हैं।
आइये प्यारे दोस्तों अब इस बेहतरीन हिंदी काव्य खुद को ही कहीं खोना चाहता था को पढ़ते है…
“पल-पल सबका होकर देखा
बे मतलब सबको सब कुछ देकर देखा
पागल था जो हर किसी को खुशी देना चाहता था”
खुद को ही कहीं खोना चाहता था-Hindi Kavita on Chahta Tha
हर किसी का होना चाहता था
मैं तो खुद
खुद को ही कहीं खोना चाहता था…
यहाँ कोई नहीं है किसी का
मगर मैं तो फिर भी सभी का होना चाहता था
क्या मालूम था मैं तो खुद
खुद को ही कहीं खोना चाहता था…
पल-पल सबका होकर देखा
बे मतलब सबको सब कुछ देकर देखा
पागल था जो हर किसी को खुशी देना चाहता था
मैं तो खुद-खुद को कहीं खोना चाहता था…
चाहने वाले शायद लाखों होते यहाँ भी
लेकिन नादान था मैं
जो इस शराब को थोड़ा भी नहीं चाहता था
मैं तो खुद
खुद को कहीं खोना चाहता था…
ए-दीप कतराने लगे थे यार मेरे ही मुझसे
जो महफ़िलों से उनकी छुटकारा चाहता था
मैं तो खुद
खुद को कहीं खोना चाहता था…
इस जानलेवा बेरोजगारी में भला कोई कैसे समझता
जो मैं फट्टी हुई जेब से इनको समझाना चाहता था
मैं तो खुद
खुद को कहीं ए-दोस्त खोना चाहता था…
गरीबी के कारण लोग नज़रों के सामने मरने लगे है
दौलतमंद के यहाँ दौलत के भरे गोदाम सड़ने लगे
और सोचने की बात है
कि वो सरकार से ज़रा सा मुआवजा चाहता था..
मैं तो खुद
खुद को कहीं खोना चाहता था…
झूठला दिया जाता है सच को बढ़ी चतुराई से यहाँ
और इक झूठ के नुमाइंदे को शिखर पे चड्ढा दिया जाता है
मैं तो खुद
खुद को ही कहीं खोना चाहता था…
बस दो पल हर किसी का होना चाहता था
मैं तो खुद
खुद को ही कहीं खोना चाहता था.!!
~कुलदीप संभ्रवाल
“गरीबी के कारण लोग नज़रों के सामने मरने लगे है
दौलतमंद के यहाँ दौलत के भरे गोदाम सड़ने लगे
और सोचने की बात है
कि वो सरकार से ज़रा सा मुआवजा चाहता था”
यह कविता हमें बताती है कि असली खुशी और संतोष तभी मिलता है जब हम अपनी इच्छाओं और पहचान को पीछे छोड़कर दूसरों के भले के लिए सोचते हैं । इस में जो भी भावना है वो हम सब के लिए एक प्रेरणा है जो हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम और समर्पण खुद को खोकर भी दूसरों की खुशी में छिपा होता है।
नोट:-
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Khud Ko Khona Chahta Tha in Hinglish Poem
Har Kisi Ka Hona Chahta Tha
Main To Khud, Khud Ko Hi Kahi Khona Chahta Tha…
Yahan Koyi Nahi Hai Kisi Ka Magar
Main To Phir Bhi Sabhi Ka Hona Chahata Tha
Kya Maloom Main To Khud, Khud Ko Hi Kahi Khona Chahta Tha…
Pal-Pal Sabaka Hokar Dekha
Bin Matalab Sabako Sab Kuchh Dekar Dekha
Paagal Tha Jo Har Kisi Ko Khushi Dena Chahata Tha
Main To Khud, Khud Ko Hi Kahi Khona Chahta Tha…
Chahane Vale Shayad Lakho Hote Yahan Bhi
Lekin Nadan Tha Main
Jo Is Sharab Ko Thoda Bhi Nahi Chahata Tha
Main To Khud, Khud Ko Hi Kahi Khona Chahta Tha…
E-Deep Katrane Lge The Yaar Mere Hi Mujhse
Jo Mahfilo Se Unaki Chhutakara Chahata Tha
Main To Khud, Khud Ko Hi Kahi Khona Chahta Tha…
Is Janleva Berojagari Mein Bhla Koyi Kaise Samajhta
Jo Main Fatti Huyi Jeb Se Inako Samajhana Chahata Tha
Main To Khud, Khud Ko Hi Kahi Khona Chahta Tha…
Garibi Ke Karan Log Nazro Ke Samane Marne Lge Hai
Daulatmand Ke Yahan Daulat Ke Bhare Godam Sadne Lge
Aur Sochne Kee Baat Hai Ki Vo Sarakar Se Zra Sa Muavja Chahata Tha
Main To Khud, Khud Ko Hi Kahi Khona Chahta Tha…
Jhoothla Diya Jata Hai Sach Ko Badi Chturayi Se Yahan
Aur Ik Jhooth Ke Numainde Ko Shikhar Pe Chadha Diya Jata Hai
Main To Khu- Khud Ko Hi Kahi Khona Chahta Tha…
Bas Do Pal Har Kisi Ka Hona Chahata Tha
Main To Khud, Khud Ko Hi Kahin Khona Chahta Tha.!!
Write By:- Kuldeep Samberwal
“Har Kisi Ka Hona Chahta Tha
Main To Khud-Khud Ko Hi Kahi Khona Chahata Tha”
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