Hindi Poem on Ke Bare Mein | मुझसे मत पुछ उसके बारे में

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मुझसे मत पुछ उसके बारे में | Poems on Ke Bare Mein:- नमस्कार दोस्तों हम आपके लिए लेकर आए हैं एक बेहतरीन हिंदी काव्य जो की हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के बारे में हमने जागरुक करने के लिए लिखा गया है।जिस तरह हम दिन रात लगकर पेड़ पौधों को काट रहे हैं तो लगता है आने वाले समय में हम बहुत बड़ी खुद के लिए समस्या पैदा कर रहे हैं जिससे न जाने कितनी बीमारियों का सामना हमारे आने वाली पीढ़ी को करना पड़ेगा ।

अगर इसी तरह दिन रात हम पेड़ पौधों को काटने लगे रहे तो न समय पर बरसात होगी न फसले होगी और मौसम में न जाने कितने बदलाव हमें हर दिन देखने को मिलेंगे तो इसलिए दोस्तों हमें अपने पर्यावरण को बनाए रखने के लिए हर दिन कम से कम एक पौधा तो कहीं न कहीं लगाना ही चाहिए। पौधे लगाने के साथ-साथ उसकी देखभाल करना भी बहुत आवश्यक है नहीं तो पौधे जल्द ही सूख कर खत्म हो जाएंगे।

“इन चलते फिरते इंसानो से क्या उम्मीदये तो शुन्य हो चुके हैं

अगर ज्यादा ही तडफ है ए-दीप जानने की

तो फिर इन मुर्दों से पुछ दो गज जमीं के बारे में”

आइये दोस्तों अब पढ़ते हैं इस ह्रदय को छू लेने वाली सुन्दर सी हिन्दी कविता काव्य को…

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मुझसे मत पुछ उसके बारे में | Hindi Poems on Ke Bare Mein

ए-मुसाफ़िर मुझसे मत पुछ उसके बारे में
अगर पुछना है तो इन फिजाओं से पुछ
उस खुदा के बारे में..
 
महत्वहीन लगता था शायद तुझे ये जंगल
अब पुछने ही लगा है तो फिर
उन निर्दोष जानवरों से पुछ इस जंगल के बारे में..
 
करके बरबाद समंदर का समंदर
सुखे दरिया से क्या पुछता है
अगर पुछना ही है तो उस आसमां से पुछ
पानी के बारे में..
 
हर सीमा को लांघ कर
पेड़-पौधे पहाड़ों से शिकायत किस बात की
अब पुछने ही लगा है तो फिर खुद से पुछ
अपनी बेशरम हरकतों के बारे में..
 
इन चलते फिरते इंसानो से क्या उम्मीद
ये तो शुन्य हो चुके हैं
अगर ज्यादा ही तडफ है ए-दीप जानने की
तो फिर इन मुर्दों से पुछ दो गज जमीं के बारे में..
 
ए-मुसाफ़िर मुझसे मत पुछ उसके बारे में
अगर पुछना है तो इन फिजाओं से पुछ
उस खुदा के बारे में.!!
 
~कुलदीप सभ्रवाल
 

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Poem on Hindi Ke Bare Mein | मुझसे मत पुछ उसके बारे में

A-Musafir Mujhse Mat Puchh Usake Bare Mein
Agr Puchhna Hai To In Fijaon Se Puchh Us Khuda Ke Bare Mein.

Mahtvahin Lgta Tha Shayd Tujhe Ye Jangal
Jab Ab Puchhne Hi Lga Hai To Phir Un Nirdosh Janvaron Se Puchh
Is Jangal Ke Bare Mein.

Karke Barbad Samndar Ka Samndar
Sukhe Dariya Se Kya Puchhta Hai Agar Puchhna Hi Hai To
Us Aasaman Se Puchh Pani Ke Bare Mein.

Har Sima Ko Langh Kar
In Ped-Podhe Pohdon Se Shikayat Kis Bat Ki
Ab Puchhne Hi Lga Hai To Phir Khud Se Puchh Apane Beshram Harkton Ke Bare Mein.

En Chalte Phirte Insano Se Kya Ummid Ye To Sun Ho Chuke Hain
Agar Jyada Hi Tadph Hai E-Deep Janne Kee To Phir
En Murdon Se Puchh Do Gaj Jameen Ke Bare Mein.

A-Musafir Mujhse Mat Puchh Usake Bare Mein
Agr Puchhna Hai To In Fijaon Se Puchh Us Khuda Ke Bare Mein.!!

Write By:-Kuldeep Samberwal

“Mujhse Mat Puchh Usake Bare Mein
Agr Puchhna Hai To In Fijaon Se Puchh Us Khuda Ke Bare Mein”

Youtube Video:- पेड़-पौधे पहाड़ों से शिकायत किस बात की

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