औरत और समाज की कड़वी सच्चाई | Poetry on Aurat Aur Samaj in Hindi

By admin

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Poetry on Aurat Aur Samaj

औरत और समाज की कड़वी सच्चाई-Poetry on Aurat Aur Samaj:-इस भारत माँ की धरती पर जन्म लेना एक बेहद ही प्यारा और बेस्किमती तोहफा है, लेकिन जब ज़माना अपनी हैवानियत पर उतर आता है और एक मासूमियत का नकाब पहन लेता है, तो यही धरती और इस धरती पर रहने वाले लोग बहुत ही डराने लगने लग जाते है। महिलाओं और बच्चियों के साथ जो ये इस दोर में दिन-रात अत्याचार होने लगे है इनकी इन कहानियाँ ने न सिर्फ समाज का काला चेहरा दिखाया हैं, बल्कि हमारे इस समाज के सामने एक बहुत बड़ा सवाल भी खड़ा कर दिया हैं –

क्या हमारा ये समाज वाकई अब इंसानियत की राह पर चलने वाला नही रहा हैं? यह कविता उसी दुःख और दर्द को उजागर करते हुए कुछ बयाँ करने की कोसिस कर रही है, अब इन मासूम बच्चियों को इस दुनिया में लाने से पहले ही उनके माँ-बाप को ये सोचने पर मजबूर कर दिया जाता है की जन्म इन नन्ही सी जान को इस जहान में लाये या न लाये..

तो आइये दोस्तों अब हम इस बेहतरीन कविता(Poetry on Aurat Aur Samaj) को पढ़ते हैं.……

“हैवानियत का दोर है
हर मासूम की वालिद अब लगने लगी कमजोर है”

Poetry on Aurat Aur Samaj
Aurat Aur Samaj In Hindi Poetry

औरत और समाज की कड़वी सच्चाई-Poetry on Aurat Aur Samaj

रखा नहीं कदम अभी तक जिसनें जमीं पर
होने लगी हैं साजिश उसके लिए
जमीं पर..

हैवानियत का दोर है
हर मासूम की वालिद अब लगने लगी कमजोर है
सोचने को मजबूर है इक नन्ही सी परी को लाऊं या ना लाऊं,
जमीं पर…

घर का आंगन विरान है
एक लडके कि चाह ने देखो मारी कितनी संतान है
हाले समाज देखकर जन्म लेने के नाम से भी डरने लगी है
ये मासूम सी जान
जमीं पर…

पहले भी कितना सताया है
कभी माँ कि कोख में मारा तो कभी लेकर सती का नाम जलती आग मे बैठाया है
अब बताओं मुझे में क्यों आऊं इस
जमीं पर…

औरत ने तुझे पैदा किया औरत ने ही तुझे पाला है
खुद की औरत को औरत समझा
मगर दूसरों की पर तुने क्यों किच्चड़ उछाला है
अब कोई अपना सा नहीं लगता है
इस जमीं पर.!!

~कुलदीप सभ्रवाल

भारतीय समाज के इस कडवे सच को किसी भी तरीके से झुठलाया नहीं जा सकता और न ही इसे किसी छुपाया जा सकता है। जब तक औरतों को इस पुरुष परधान देश में बराबरी का दर्जा नही मिलता है और औरतों को इज़्ज़त हमारे इस समाज के द्वारा नही दी जाएगी तब तक इनके साथ ऐसा ही होता रहेगा और ये दानव रूपी लोग ऐसे ही औरतों पर अत्याचार करते रहेंगे जो की हमारे इस भारतीय समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जायेगा।

अब वक़्त आ गया है कि समाज में रहने वाले ये लोग अपने विचार बदले और बच्चियों को डर के साए में नहीं, बल्कि खुले आसमान के नीचे खुलकर जीने का हक़ दे। इस धरती को एक सुरक्षित और सुंदर जगह बनाने के लिए हमें खुद को और इस समाज की बुरी आदतों को बदलना होगा।

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Poetry on Aurat Aur Samaj
Poetry on Aurat Aur Samaj in Hindi

Poetry on Aurat Aur Samaj In Hinglish – ek Chilling Hakikat

Rakha Nhi Kadam Abhi Tak Jisane Jameen Par
Hone Lagi Hain Saajish Uske Liye
Jameen Par..

Haiwaniyat Ka Dor Hai
Har Maasoom Ki Waalid Ab Lagne Lagi Kamjor Hai
Sochne Ko Majaboor Hai Ik Nanhi Si Pari Ko Laoon Ya Na Laoon,
Jameen Par…

Ghar Ka Aangan Viran Hai
Ek Ladake Ki Chah Ne Dekho Mari Kitani Santan Hai
Haale Samaj Dekh Kar
Janm Lene Ke Naam Se Bhi Darne Lagi Hai Ye Maasoom See Jaan
is Jameen Par…

Pahle Bhi Kitana Sataya Hai,
Kabhi Maa Ki Kokh Mein Mara To
Kabhi Lekar Sati Ka Naam Jalati Aag Me Baithaya Hai
Ab Batao Mujhe Mein Kyon Aaoon
is Jameen Par…

Aurat Ne Tujhe Paida Kiya Aurat Ne Hi Tujhe Paala Hai
Khud Ki Aurat Ko Aurat Samjha
Magar Dusaron Ki Par Tune Kyon Kichchd Uchhala Hai
Ab Koyi Apana Sa Nahin Lagta Hai
is Jameen Par.!!

Write by:- Kuldeep Samberwal

“औरत और समाज की कड़वी सच्चाई – Poetry on Aurat Aur Samaj”

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