कभी रेप किया कभी दूसरों के हाथों बेच दिया बस इसी तरह तो किया है शोषण मेरा

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Aurat Hun Patthar To Nahin

औरत हुँ पत्थर तो नहीं | Very Emotional Aurat Hun Patthar To Nahin In Hindi Poem:- यह कविता औरतों की भावनाओं और सामाजिक जीवन जीने को ध्यान में रखते हुए “ औरत हुँ पत्थर तो नहीं” कविता एक गहरी संवेदनशीलता और विचारशीलता की ओर इशारा करती है। इस कविता के माध्यम से औरतों के शोषण और उन पर किए गए अन्याय की कहानी को बतलाया गया है।

कविता की शुरुआत एक महिला की पीड़ा और संघर्ष से होती है। वह बताती है कि उसे कभी घूंघट रखने को मजबूर किया गया तो कभी जलती आग में बिना उसकी मर्जी के न चाहते हुए भी बैठा दिया गया, और कभी अकेले अपनी दुःख,दर्दो से जूझते देखा गया है। औरत को अपनी इस दुखदाई स्थिति पर सवाल उठाने का भी मौका नहीं दिया गया, क्योंकि उसके आसपास के लोग सिर्फ अपने स्वार्थ की मतलब को निकने में लगे रहते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि समाज ने उसका सिर्फ फायदा ही उठाया है।

कविता का दूसरा हिस्सा एक औरत के अनदेखे दर्द और उसके स्वयं की इच्छाओं के बारे में बता रहा है। वो ख रही है की कभी कभी तो उसके मन की बात सुनने के लिए भी उसके पास कोई नहीं होता है । इस समाज ने महिलाओं को हमेशा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है, और उसके व्यक्तिगत दुःख को इस समाज ने कोई महत्व नहीं दिया।

“क्या किया इस समाज ने मेरा
कभी रेप किया कभी दूसरों के हाथों बेच दिया
बस इसी तरह तो समाज ने किया है शोषण मेरा”

आइये प्यारे दोस्तों अब इस बेहतरीन हिंदी काव्य औरत हुँ पत्थर तो नहीं को पढ़ते है ……

very Emotional Aurat Hun Patthar To Nahin In Hindi Poem
Very Emotional Aurat Hun Patthar To Nahin In Hindi Poem

औरत हुँ पत्थर तो नहीं | Hindi Kavita on Life

कभी घुंघट मे रखा
कभी जलती आग मे न चाहते हुए भी जलने को बैठा दिया
कम से कम बताया तो होता कुसुर क्या था मेरा..

न किसी ने साथ दिया
जब दिल किया रख लिया और जब दिल किया छोड दिया
ऐसे ही तो उठाया है सबने फायदा मेरा…

बडी-बडी बातें बनाई, खुद भी लूटी औरों से भी लूटवाई
इसी प्रकार सदियों से चलता आ रहा है शोषण मेरा..

क्या किया इस समाज ने मेरा
कभी रेप किया कभी दूसरों के हाथों बेच दिया
बस इसी तरह तो समाज ने किया है शोषण मेरा..

अब मन करता है रूकसत हो जाऊं इस मतलबी जहान से
न अतीत था,न वर्तमान है,
और हालाते समाज देख कर शायद न होगा भविष्य मेरा
औरत हुँ पत्थर तो नहीं.!!

~कुलदीप सभ्रवाल

अंततः कविता एक शक्तिशाली संदेश देती है कि औरत की निराशा और उसके अधिकारों की रक्षा की जरूरत है. औरत खुद को पत्थर नहीं मानती, बल्कि एक जीवंत इंसान मानती है जो सम्मान और स्वतंत्रता की प्रतीक्षा कर रहा है. वह इस मातलबी और अंधे समाज से विदा लेने का फैसला करती है जो न तो अतीत को मानता है न ही वर्तमान को समझता है।

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Very Emotional Aurat Hun Patthar To Nahin In Hindi Poem

Kabhi Ghunght Mai Rakha
Kabhi Jalati Aag Me N Chahate Huye Bhi Jalne Ko Baitha Diya
Km Se Km Bataya To Hota Kusur Kya Tha Mera..

N Kisi Ne Saath Diya Jab Dil Kiya Rakh Liya Aur Jab Dil Kiya Chhod Diya
Aise Hi To Uthaya Hai Sabne Faayada Mera…

Badi-Badi Baten Banai,
Khud Bhi Luti Auron Se Bhi Lutavai
Ise Prakar Sadiyon Se Chlata Aa Rha Hai Shoshan Mera..

Kya Kiya Is Samaaj Ne Mera
Kabhi Rep Kiya Kabhi Dusaron Ke Haathon Baich Diya
Bas Ise Tarah To Samaaj Ne Kiya Hai Shoshan Mera..

Ab Mn Kaata Hai Ruksat Ho Jaoo Is Matalabi Jahaan Se
Na Atit Tha,Na Vartman Hai, Aur Haalate Samaaj Dekh Kar
Shayad N Hoga Bhavishy Mera
Aurat Hun Patthar To Nahin.!!

Wrrite By~Kuldeep Samberwal

“Badi-Badi Baten Banai,
Khud Bhi Luti Auron Se Bhi Lutavai
Ise Prakar Sadiyon Se Chlata Aa Rha Hai Shoshan Mera”

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